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मुक्तक छंद

  गांव गांव से मिला तो नगर बन गया सीपी कि बूंद सर्प में जहर बन गया  क्या क्या जग में है ईश्वर बताओ हमें  जब चला राही राह पर डगर बन गया  -अमित कुमार अनभिज्ञ  बरबसपुर कबीरधाम 

virat kavi sammelan

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स्व.खुमान साव जी कि श्रधांजलि व सम्मान समारोह  23/6/2019 को सम्पन्न अद्भुत सम्मन समारोह व  कवि सम्मेलन का आयोजन वार्षिक अधिवेशन के चलते"भोरम्देव साहित्य सृजन मंच"के तत्वाधान में किया गया ।  इस कर्यक्रम कि अध्यक्षता कवर्धा के साहित्यकार नीरज मंजीत छाबड़ा ने किया। कर्यक्रम में खैरागड संगीत विश्वविद्यालय कि कुलपति डॉक्टर मांडवी सिंह जी, कांग्रेस नेता श्री रामकृष्ण साहू जी, छंद के छ परिवार के संस्थापक व स्व.कोदूरम दलित जी के सुपुत्र अरुण कुमार निगम जी, छ्त्तीसगढ़ के गीतकार जनाब मीर अली मीर जी, वरिष्ठ इतिहासकार कवर्धा से महेश आमदे जी, वन मंडलाधिकारी दिल्राराज प्रभाकर जी, साहित्यकार समय्लाल विवेक जी तथा सम्मान समारोह में 150 साहित्यकार ने उपस्थिति देकर कव्यपाठ किया।  सभी रचनाकारों को साहित्य सम्मान पत्र दीया गया *बेसबॉल में इंडिया टीम का प्रतिनिधत्व करने वाली कवर्धा कि कु एकता जन्घेल को सहित्य रत्न सम्मान से नवाजा गया  "कर्यक्रम में श्री बोधन रम निषाद जी कि कृति *यार तेरी कसम पुस्तक का विमोचन हुआ साथ ही ईश्वर लाल आरूग जी का संपादित पुस्तक आरूग चौरा का संपाद

कविता

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                    मुक्तक                    ----------- तू  सादगी  के  हर  पन्ने  को   खोलते  जा तू मनुज मनुज के सदभाओ को तौलते जा कितनी सच्चाई छुपी है बताएगा भगवान तुझे तू  मुख  से  हरदम   प्रिय  वचन   बोलते  जा                      -अमित कुमार अनभिज्ञ                     बरबसपुर कबीरधाम(छ.ग)

गीत

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हंस और कौए में फर्क होता है 

दोहा

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हजारों रंग बिखरे है जिंदगी में इंद्रधनुष के लाखों सुख दुख निखरे है सदी में मनुज के 

रचना

        मुक्तक किसी कि खुशनुमाई को चुराया जा नहीं सकता , ये गर्दन गर्व कि दौलत है झुकाया जा नहीं सकता । हमारे खून में वों कर्ज है भुलाए नहीं भूलते , विपत्ति आएगी सिर पर हटाया जा नहीं सकता ॥ -अमित कुमार अनभिज्ञ  बरबसपुर कबीरधाम 

मेहनत मर्यादा का मूलमंत्र

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जीवन का संघर्ष 

गजल--अमित कुमार

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आगाज है किसी वक्त का आवाज है अभ्यस्त का 

"वंदे माँ शारदे"

हे जननी हे जन्मभूमि माँ तेरे बिन जीवन ये प्यासा मेरा तुझसे मिलने कि अभिलाषा मेरा तू पुकारे अगर माँ चला आऊंगा तू ही जननी मेरी तू विधाता मेरा माँ तुम्हीं हो मेरे जीवन कि कतार वीणा जैसी बजती रहती सितार मेरे कानों में आती ध्वनि ही तेरी तू जो आए तो आ जाए वन बहार                 -अमित कुमार अनभिज्ञ                  बरबसपुर,कबीरधाम 

नवदहा हमर छत्तीसगढ़

                                  जय हो छ्त्तीसगढ़  सच बौल्बे त छाती पिराथे  झूठ बोलबे त आंखी पिराथे  कनिहा लचक्गे माटी भसक्गे  कौनो नइ आईच आगी लपक्गे  सरसों के खेत म धान बोवाये  कारगा बदरा एके संग मीजाये  बछरू के खुरी पारा के टूरी  दोनों एके हरे लगे रंग भूरि  चूल्हा के आगी डोकरा के लाठी  कका करे ग ', आमा के फाती  डोकरि दाई ह भात पसाये  ओखरे ऊपर अंगार रोटी धसाये  गांव के सूरता बबा के पुरखा  ईखरे सूम्मत ह घर के पूरता  तूमा ताऊआगे साग बसीयागे  घर के बड़े बेटा विकट अटियाथे  छोटे के मैं ह का करव बखान  पढ़ाई लिखाई म नईये धियान  आरूग बासी ल बाबू ह खाए  डंडा धरे खेत डहर जाए  कांदी लूवइया खेत पलइया  खातू माटी डाले बर बतइया  गांव के घाट म जामे अमरइया  सूघ्घर कमइया सूघ्घर खवइया  आंखी के पुतली सोन के मुण्दरी  चांदी के बीछया माथ म टिकया   गरमी म तरीया के पानी अटागे  छोटे मोटे कुआं डबरी सूखागे  तरीया के पार ल कूदा थे लईका  आमा पेड़ म बांधे हे फईरका  -अमित कुमार अनभिज्ञ    बरबसपुर, कबीरधाम