नवदहा हमर छत्तीसगढ़

                                  जय हो छ्त्तीसगढ़ 

सच बौल्बे त छाती पिराथे 
झूठ बोलबे त आंखी पिराथे 

कनिहा लचक्गे माटी भसक्गे 
कौनो नइ आईच आगी लपक्गे 

सरसों के खेत म धान बोवाये 
कारगा बदरा एके संग मीजाये 

बछरू के खुरी पारा के टूरी 
दोनों एके हरे लगे रंग भूरि 

चूल्हा के आगी डोकरा के लाठी 
कका करे ग ', आमा के फाती 

डोकरि दाई ह भात पसाये 
ओखरे ऊपर अंगार रोटी धसाये 

गांव के सूरता बबा के पुरखा 
ईखरे सूम्मत ह घर के पूरता 

तूमा ताऊआगे साग बसीयागे 
घर के बड़े बेटा विकट अटियाथे 

छोटे के मैं ह का करव बखान 
पढ़ाई लिखाई म नईये धियान 

आरूग बासी ल बाबू ह खाए 
डंडा धरे खेत डहर जाए 

कांदी लूवइया खेत पलइया 
खातू माटी डाले बर बतइया 

गांव के घाट म जामे अमरइया 
सूघ्घर कमइया सूघ्घर खवइया 

आंखी के पुतली सोन के मुण्दरी 
चांदी के बीछया माथ म टिकया  

गरमी म तरीया के पानी अटागे 
छोटे मोटे कुआं डबरी सूखागे 

तरीया के पार ल कूदा थे लईका 
आमा पेड़ म बांधे हे फईरका

 -अमित कुमार अनभिज्ञ 
  बरबसपुर, कबीरधाम 

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