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मुक्तक

जिंदगी के सफर में ही चलते रहे , कीस्मतो के भरोसे हाथ मलते रहे।  जीने मरने की परवाह ना करना तुम हम  बदलते  रहे  तुम  बदलते  रहे॥ 

कहानी पढ़ा करता था

पहले भी मैं कहानी पढ़ा करता था  तेरे सपनों को सच में गढ़ा करता था  अब तो कुछ भी होता नहीं हैं मगर  पानी बन बादलों में चढ़ा करता था  आज तट पे खड़ा हूँ बेरुखी हंसती है हरी भरी जिंदगी सूखी सी लगती हैं  जाने अंजाने में क्या कर बैठे हम  सांस आस के भँवर में रुकी लगती हैं  -अमित कुमार अनभिज्ञ  हंसते हंसते कट जाएंगे रस्ते 

शराब करे जिंदगी खराब

दरूहा मंदहा जुआरी लबरहा  खऊहा पेटू कस अलकरहा रोज कस सुध बुध ला खोथे सुरबईहा जईसे जगबकहा  मांस मच्छी जईसे अन्न खावै  बीडी गांजा मा दिन ला पहावै  काम करे के बेर अटियावै  घर के सबो संपति उडावै  इहीच काम मा जिनगी पहाथे  बुरा करम के फल पाथे  शरम लाज ला बेच खाए हे  मंदहा कस अब्बड बाऊराथे -अमित कुमार अनभिज्ञ  बरबसपुर कबीरधाम    

साफ सुथरा रहिना चाही

चित्र
जऊन कहिना तेन कहिना चाही  साफ सुथरा रहिना चाही  झोल झालर मा काम नइ बनय  दुख पिरा ला सहिना चाही 

काम करो कुछ ऐसा

काम जग करो कुछ ऐसा सबकुछ जीवन में हो जाए  मन संत रहे हमेशा अमृत सुख सम पा जाए  हट योग ना कभी जीवन का सत्य पथ दर्पण  ऐसा सत्कर्म हो का हरदम सारे कर्म सफल हो जाए            -अमित कुमार अनभिज्ञ  हालात ऐसा ना करना तुम सिर झूकाके चलना पड़े  नफरत कि आँधी में जलके प्रेम ताप में जलना पड़े  मुश्किल भंवर में फंसकर राही साहिल क्या मिलेगा  नाव संग पतवार चलाकर सागर भी पार करना पड़े॥