कहानी पढ़ा करता था
पहले भी मैं कहानी पढ़ा करता था
तेरे सपनों को सच में गढ़ा करता था
अब तो कुछ भी होता नहीं हैं मगर
पानी बन बादलों में चढ़ा करता था
आज तट पे खड़ा हूँ बेरुखी हंसती है
हरी भरी जिंदगी सूखी सी लगती हैं
जाने अंजाने में क्या कर बैठे हम
सांस आस के भँवर में रुकी लगती हैं
-अमित कुमार अनभिज्ञ
हंसते हंसते कट जाएंगे रस्ते
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