नशा के मार , दारू बेकार

भट्ठी खोल कर दिस जंजाल 

बनगे भईया जीव के काल 

ए चक्कर मा सब बेहाल 

दरूहा बोले दारू लावव तत्काल  

-अनभिज्ञ 

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कविता(poetry)

छत्तीसगढ़ महतारी